वो सुबह जब 

ओस से भरी देखी 

लगा ज्यों रात ने 

विरह की घड़ी देखी 

घूँघट कोहरे का ओढ़कर 

लाजवँती-से लजाते लाल सूरज की 

रक्ताभ रश्मियाँ देखीं  

चिकने हरे पत्तों पर 

मरकरी-सी सजीं 

शबनम की उज्ज्वल 

नाज़ुक लड़ियाँ देखीं 

ठिठुरे ठण्ड से ख़ामोश परिंदे 

गुनगुना रहे हैं गुनगुना गीत  

दरख़्तों की लचकी टहनियों पर 

नभ के चाँद-तारे और जुगनू 

निशा के इंतज़ार में गुम हैं 

उनींदी अलसायी आँखें 

तलाशती हैं अटारियों पर

लायब्रेरी खुलने से पहले 

गुलमोहर के नीचे 

मिलने का वादा है 

सवेरे सरपट क़दमों से 

उनसे पहले  

गुलमोहर के नीचे 

उस सर्द स्याह-सफ़ेद बेंच तक 

पहुँचने का इरादा है

मुझसे पहले तितली-भँवरे 

हल्की-हल्की ठण्डी आहें भरते  

फूलों-कलियों संग 

अठखेलियाँ करने आ गये 

हरी घास पर बिखरे चमकीले 

ओस-कण सूरज को भा गये

अब कोई आँसू टपकेगा 

तो ओस होने के भ्रम से बचेगा। 

© रवीन्द्र सिंह यादव

रक्ताभ= रक्त-आभा, रक्त के रंग (लाल ) की आभावाला / BLOOD LIKE COLOUR   

मरकरी= पारा / MERCURY 

शबनम= ओस / DEW 

सर्द= ठण्डा / ठण्डी / COLD, DAMP  

6 विचार “ओस&rdquo पर;

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